केन्या द्वारा ड्यूटी-फ्री चावल आयात की मंजूरी से भारत के सामने बड़ी निर्यात संभावनाएँ
By M&M Bureau
केन्या सरकार ने घोषणा की है कि वह 5 लाख टन सफेद चावल (ग्रेड-1) का आयात शुल्क-मुक्त करेगी, जिनमें से अधिकतर भारत और पाकिस्तान से आएगा। सरकार का कहना है कि यह कदम चावल की आसन्न कमी को पूरा करने और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए है। लेकिन इस फैसले ने स्थानीय किसानों में गहरी नाराज़गी पैदा कर दी है। उनका कहना है कि हालिया अच्छी फसल के बाद भी उनके पास बिना बिके स्टॉक पड़े हैं और ऐसे में सस्ते आयात उनके जीवनयापन को बर्बाद कर देंगे।
सरकारी अधिसूचना और आयात योजना
28 जुलाई 2025 को जारी राजपत्र अधिसूचना में राष्ट्रीय कोषागार कैबिनेट सचिव जॉन मबाडी ने 31 दिसंबर 2025 तक 5 लाख टन ड्यूटी-फ्री चावल आयात की अनुमति दी। कृषि मंत्रालय की सिफारिश पर उठाए गए इस कदम का उद्देश्य चावल की कीमतों को नियंत्रित करना और मांग की आपूर्ति सुनिश्चित करना है। केन्या में इस साल चावल की खपत 15 लाख टन तक पहुँचने का अनुमान है। मक्का के बाद चावल और गेहूं देश के सबसे बड़े मुख्य खाद्य पदार्थों में गिने जाते हैं।
वर्तमान में केन्या केवल करीब 2.6 लाख टन चावल ही पैदा करता है, यानी देश की ज़रूरत का केवल 20%। बाकी की आपूर्ति मुख्यतः भारत और पाकिस्तान से होती है। अनुमान है कि 2025 में प्रति व्यक्ति खपत 29 किलोग्राम तक पहुँच जाएगी।
किसानों की नाराज़गी: “कीमतें गिरेंगी, स्टॉक बिकेगा नहीं”
हालाँकि उत्पादन कम है, फिर भी किसानों का कहना है कि सरकार ने कमी के अनुमान को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया है और 5 लाख टन का आयात कोटा ज़रूरत से कहीं अधिक है।
“जब हमारी हाल की अच्छी फसल का चावल अभी भी गोदामों में पड़ा है, तब इतना बड़ा आयात हमें बर्बाद कर देगा। छोटे किसान औने-पौने दामों पर बेचने को मजबूर होंगे और केवल वे कार्टेल फायदा उठाएँगे जिन्हें ड्यूटी-फ्री लाइसेंस मिलते हैं,” स्थानीय किसान जेम्स मैन्या ने कहा।
कुछ किसानों ने तो अदालत का दरवाज़ा खटखटाया है। याचिकाकर्ता एलेक्स मुस्योकी ने अपनी दलील में कहा कि सरकार का यह निर्णय भ्रामक और असंवैधानिक है क्योंकि इसमें पहले से उपलब्ध घरेलू स्टॉक की अनदेखी की गई और जनता से कोई परामर्श नहीं लिया गया। उन्होंने चेतावनी दी कि आयात के कारण पहले से ही 40% तक होने वाले कटाई-बाद के नुकसान और बढ़ सकते हैं।
सरकार का पक्ष: “आयात ज़रूरी है”
कृषि और पशुपालन विकास मंत्री मुताही काग्वे ने इस फैसले का बचाव करते हुए कहा कि अगर आयात पर रोक लगाई गई तो दाम आसमान छूने लगेंगे और जीवन-यापन संकट और गहराएगा। उन्होंने दावा किया कि पुलिस, सेना, स्कूलों और सामाजिक योजनाओं की ज़रूरतें किसानों की आपूर्ति से कहीं अधिक हैं।
“हम हमेशा चावल आयात करते आए हैं – पिछले तीन साल में औसतन 7 लाख टन सालाना। स्थानीय उत्पादन मांग का सिर्फ 20% पूरा करता है,” काग्वे ने कहा। उन्होंने बताया कि सरकार किसानों की सुरक्षा के लिए सहकारी समितियों से चावल खरीदने हेतु अनुबंध कर रही है।
विशेषज्ञों की चेतावनी: “कृत्रिम कमी का खेल”
नीति विशेषज्ञ एंथनी म्वांगी का कहना है कि सरकार की कमी की कहानी राजनीतिक रूप से जुड़े आयातकों को फायदा पहुँचाने के लिए गढ़ी गई है। उनके अनुसार, मक्का और गेहूं के विपरीत, चावल आयात पर कोई सख्त पाबंदी नहीं है, जिससे स्थानीय किसान असुरक्षित रह जाते हैं।
“ड्यूटी-फ्री लाइसेंस अक्सर बेईमान व्यापारियों को दिए जाते हैं। वे टैक्स छूट से फायदा उठाते हैं जबकि असली किसान पुराने मिलिंग उपकरणों, खराब भंडारण और निवेश की कमी से जूझते रहते हैं,” म्वांगी ने कहा। उन्होंने सुझाव दिया कि सरकार को आधुनिक मिलिंग संयंत्रों, बेहतर सहकारी समितियों और नई उच्च-उपज व सूखा-रोधी किस्मों में निवेश करना चाहिए।
चावल उत्पादन में कमी और जलवायु संकट से जूझ रहे केन्या में आयात कोई नई बात नहीं है। लेकिन इस बार किसान चेतावनी दे रहे हैं कि अगर बाज़ार को ड्यूटी-फ्री आयात से भर दिया गया, तो घरेलू उत्पादन पूरी तरह से हतोत्साहित हो सकता है।