रिकॉर्ड अनाज उत्पादन से भारत का 20% एथनॉल मिश्रण लक्ष्य सुरक्षित
भारत का पेट्रोल में 20 प्रतिशत एथनॉल मिश्रण हासिल करने का लक्ष्य (एथनॉल सप्लाई ईयर 2025) अब कच्चे माल (फीडस्टॉक) की कमी की आशंकाओं से प्रभावित नहीं है। यह दावा इन्क्रेड रिसर्च की एक नई रिपोर्ट में किया गया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय खाद्य निगम (FCI) के चावल के बफर स्टॉक का आधा भी इस्तेमाल कर लिया जाए तो पूरे मिश्रण लक्ष्य को आसानी से हासिल किया जा सकता है। रिपोर्ट के मुताबिक, “सिर्फ 2.3 करोड़ टन चावल से 11 अरब लीटर एथनॉल बनाया जा सकता है, जो भारत के पूरे 20 प्रतिशत मिश्रण की जरूरत को पूरा करने के लिए पर्याप्त है। FCI का बफर नॉर्म 1.35 करोड़ टन है, जबकि मौजूदा स्टॉक बढ़कर 5.4 करोड़ टन हो गया है—यानी जरूरत से 4 गुना ज्यादा।”
इसका मतलब यह है कि अधिशेष चावल स्टॉक का आधा भी एथनॉल के लिए मोड़ दिया जाए, तो लक्ष्य आराम से हासिल हो सकता है। यह गणना तो केवल चावल पर आधारित है, जबकि मक्का और अन्य फीडस्टॉक का उत्पादन भी रिकॉर्ड स्तर पर है।
ताजा आंकड़े बताते हैं कि भारत की अनाज उत्पादन क्षमता अपने चरम पर है। वित्त वर्ष 2025 में चावल का उत्पादन 15 करोड़ टन तक पहुंच गया, जो अब तक का सबसे अधिक है और 10 साल के औसत 12 करोड़ टन से कहीं ज्यादा है। इसी तरह, मक्का का उत्पादन भी 4.2 करोड़ टन तक पहुंच गया, जबकि लंबे समय का औसत 3 करोड़ टन रहा है। उम्मीद है कि वित्त वर्ष 2026 में ये फसलें और भी मजबूत उत्पादन दर्ज करेंगी।
यह अधिशेष केवल आंकड़ों तक सीमित नहीं है। FCI के पास बफर से 4 गुना ज्यादा चावल स्टॉक मौजूद है और खरीद प्रक्रिया अभी भी जारी है। यानी देश के पास एथनॉल उत्पादन के लिए कच्चे माल का पहाड़ खड़ा है।
हालांकि, यह अधिशेष FCI के लिए चुनौती भी बन गया है। स्टोरेज क्षमता पर दबाव बढ़ रहा है और लंबे समय तक अनाज के रख-रखाव से सड़ने का खतरा भी है।
रिपोर्ट के मुताबिक, इसका असर बड़ा है। जहां चीनी-आधारित एथनॉल उत्पादक नीतिगत चुनौतियों और स्थिर कीमतों से जूझ रहे हैं, वहीं अनाज-आधारित डिस्टिलरी इस रिकॉर्ड फसल और अधिशेष स्टॉक का लाभ उठाने के लिए बेहतर स्थिति में हैं।
रिपोर्ट ने यह साफ किया है कि अब एथनॉल कार्यक्रम फीडस्टॉक की कमी पर निर्भर नहीं है। केवल FCI के चावल बफर का आधा हिस्सा ही मिश्रण लक्ष्य को पूरा करने के लिए पर्याप्त है, और रिकॉर्ड मक्का उत्पादन अतिरिक्त सहारा दे रहा है। इस तरह भारत की एथनॉल कहानी ने कमी की मिथक को निर्णायक रूप से खत्म कर दिया है।