हरियाणा-यूपी सीमा पर कड़क निगरानी, अवैध धान और पीडीएस चावल की तस्करी रोकने के लिए दो नाके स्थापित
कर्नाल जिला प्रशासन ने पड़ोसी राज्यों से अवैध धान और सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के चावल के आने पर सख्ती बढ़ाते हुए हरियाणा–उत्तर प्रदेश सीमा के मंगलोरा और शेरगढ़ टापू गांव में दो नाके स्थापित किए हैं। यह कदम तब उठाया गया जब रिपोर्टें सामने आईं कि यूपी, बिहार और अन्य राज्यों से धान और PDS चावल चुपचाप कर्नाल की मंडियों और चावल मिलों में पहुंचाए जा रहे हैं।
जानकारी के अनुसार, हर साल जिले में PDS चावल और धान की आवक पर प्रशासन की नजर बनी रहती है। पिछले साल भी अन्य राज्यों से मिले PDS चावल और धान का उपयोग कम कीमत पर खरीदकर नकली गेट पास की मदद से प्रॉक्सी खरीद के रूप में किया गया था। अधिकारियों का अनुमान है कि राज्य के लिए आवंटित PDS चावल को कस्टम-मिल्ड राइस (CMR) के रूप में पास कर दिया जाता है।
कर्नाल के उपायुक्त (DC) उत्तम सिंह ने SDM अनुभव मेहता को इन नाकों की सीधी निगरानी का जिम्मा सौंपा है। ड्यूटी मजिस्ट्रेटों और पुलिस टीमों को 24 घंटे चौकसी के लिए तैनात किया गया है। इसके अलावा, इंद्री, घरौंदा, असंध और निलोखेड़ी के SDM को भी मंडियों और चावल मिलों पर कड़ी नजर रखने के निर्देश दिए गए हैं। डीसी ने मार्केट कमेटी सचिवों को स्पष्ट किया है कि बिना वैध गेट पास या हरियाणा के बाहर से आए धान को मंडियों में आने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
“ड्यूटी मजिस्ट्रेटों के साथ पुलिस कर्मियों को 24 घंटे की निगरानी के लिए तैनात किया गया है। यूपी, बिहार और अन्य राज्यों से आने वाले धान की रोकथाम सुनिश्चित की जाएगी। किसी भी अधिकारी या कर्मचारी की लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी,” डीसी ने चेतावनी दी। उन्होंने बताया कि सुरक्षा बढ़ाने के लिए CCTV कैमरे भी लगाए जा रहे हैं।

अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि कुछ व्यापारी, जिन्हें CMR के तहत 100 किलो धान पर सरकार को 67 प्रतिशत चावल लौटाना होता है, उन्होंने बाहरी राज्यों से लाए गए निम्न गुणवत्ता वाले धान और PDS चावल का इस्तेमाल किया है। इसके जरिए सिस्टम और राज्य को दोनों को धोखा दिया जा रहा है। ऐसे व्यापारी कम कीमत पर धान खरीदकर MSP के अनुसार 2,389 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से चावल के रूप में सरकार को सौंपते हैं। नकली किसान ID और प्रति एकड़ उत्पादन डेटा में छेड़छाड़ करके ये व्यापारी 400–600 रुपये प्रति क्विंटल का लाभ कमाते हैं, जबकि परिवहन लागत भी इसमें शामिल होती है।
सूत्रों ने यह भी बताया कि यह खेल व्यापारी और हरियाणा स्टेट एग्रीकल्चर मार्केटिंग बोर्ड (HSAMB) और विभिन्न खरीद एजेंसियों के अधिकारियों के बीच एक संगठित नेटवर्क के तहत किया जा रहा है। पिछले वर्षों की कई जांचें अभी लंबित हैं और अब तक कोई बड़ा मामला सजा तक नहीं पहुंचा है, जिससे खरीद प्रणाली में मिलीभगत और जवाबदेही पर सवाल खड़े हो रहे हैं।