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पश्चिम एशिया में जारी संघर्ष से उत्तर प्रदेश की चावल निर्यात पर भारी असर, कीमतों में आई तेज गिरावट

पश्चिम एशिया में जारी संघर्ष का उत्तर प्रदेश के चावल निर्यात पर गंभीर प्रभाव पड़ा है। इससे न केवल मांग में गिरावट आई है, बल्कि भुगतान भी अटक गए हैं और चावल की कीमतों में 30% से अधिक की तेज गिरावट दर्ज की गई है। निर्यातकों और चावल मिल मालिकों ने बताया कि बासमती और गैर-बासमती दोनों प्रकार के चावल की कीमतों में भारी गिरावट आई है, जबकि ईरान जैसे प्रमुख खरीदारों से भुगतान की प्रक्रिया बुरी तरह प्रभावित हुई है।

निर्यात बंद, उत्पादन जारी, किसान हो रहे नुकसान का शिकार

हिंदुस्तान टाइम्स से बातचीत में बिंदकी के आनंद कुमार गुप्ता और फतेहपुर के मनोज गांधी—जो बड़े चावल निर्यातक हैं—ने बताया कि वे पहले पश्चिम एशियाई खरीदारों को स्थानीय धान से तैयार चावल का निर्यात करते थे। “अब जब निर्यात रुक गया है, तो मांग में भारी गिरावट आई है लेकिन उत्पादन बदस्तूर जारी है। इससे धान से लेकर तैयार चावल तक की कीमतें नीचे आ गई हैं। इससे न सिर्फ मिल मालिकों को नुकसान हो रहा है, बल्कि सरकारी राजस्व भी घट रहा है और किसान भी नुकसान में हैं,” गुप्ता ने कहा।

उन्होंने बताया कि किसान बेहतर दाम की उम्मीद में अपनी फसल को स्टोर नहीं कर सकते और उन्हें घाटे में ही बेचने को मजबूर होना पड़ रहा है।

खरीद आदेश ठप, खुले बाज़ार में कीमतें गिरीं

फतेहपुर में तैनात जिला विपणन अधिकारी विनोद कुमार कैथल ने पुष्टि की कि इस वर्ष पश्चिम एशिया से चावल के ऑर्डर पिछले साल की तुलना में काफी कम आए हैं। उन्होंने कहा, “इस साल किसानों को खुले बाजार में बेहतर दाम नहीं मिल पाए क्योंकि निर्यात में भारी गिरावट आई। मिल मालिकों की खरीदारी और प्रोसेसिंग भी प्रभावित हुई है जिससे सरकारी राजस्व पर भी असर पड़ा है।”

प्रसंस्करण शुल्क कम, मिलें बंद होने की कगार पर

मैनपुरी के चावल मिल मालिक दीपक अग्निहोत्री ने बताया कि बासमती 1718 किस्म की कीमत ₹70 प्रति किलो से गिरकर ₹56 तक आ गई थी, हालांकि अब यह ₹61 तक थोड़ी सुधरी है। उन्होंने यह भी बताया कि पहले सरकार द्वारा लेवी चावल की खरीद और मिलिंग के लिए धान उपलब्ध कराना एक सहारा था, लेकिन सिर्फ ₹10 प्रति क्विंटल की प्रोसेसिंग फीस की वजह से कई मिलें बंद हो गईं।

भुगतान में देरी और मालभाड़ा बढ़ा

मैनपुरी के ही अखिल मूंदड़ा ने बताया कि ईरान में डॉलर की कमी के चलते बड़े पैमाने पर भुगतान अटक गए हैं। उन्होंने कहा कि ईरान से कम हुए तेल आयात ने उन भुगतान चैनलों को भी बंद कर दिया है जिनके जरिए पहले चावल व्यापार चलता था। रेड सी में व्यापारिक अवरोधों ने मालभाड़ा भी ढाई गुना बढ़ा दिया है।

हरदोई से महेश कुमार ने कहा कि पिछले 4-5 महीनों से बाजार सुस्त पड़ा है। “ईरान प्रमुख कारण है। हाल के हफ्तों में सभी किस्मों के चावल की कीमतों में ₹200-300 प्रति क्विंटल की गिरावट आई है,” उन्होंने बताया।

निर्यातकों और चावल मिलर्स की राय है कि जब तक पश्चिम एशिया की स्थिति सामान्य नहीं होती और भुगतान चैनल फिर से सक्रिय नहीं होते, तब तक चावल निर्यात चुनौतीपूर्ण रहेगा। इसका सीधा असर किसानों, मिल मालिकों और सरकार के राजस्व पर पड़ेगा।

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